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कविता

सात समंदर सामने

राजकुमार कुंभज


सात समंदर सामने
पीने के पानी को तरसता हूँ
पानी भरे बादल-सा गरजता हूँ
चट्‍टानों पर बरसता हूँ
और फिर जा मिलता हूँ
समंदर से।

 


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