सात समंदर सामने पीने के पानी को तरसता हूँ पानी भरे बादल-सा गरजता हूँ चट्टानों पर बरसता हूँ और फिर जा मिलता हूँ समंदर से।
हिंदी समय में राजकुमार कुंभज की रचनाएँ